तभी से सही मायने में सतयुग की कार्यशैली प्रारंभ होती है। उससे पहले वैसा होना संभव नहीं तभी से सही मायने में सतयुग की कार्यशैली प्रारंभ होती है। उससे पहले वैसा होना संभ...
"अरे! मैं यमराज के पास नहीं, बल्कि चाँद के पास जा रहा हूँ", अभिषेक हँसते हुए बोला। "अरे! मैं यमराज के पास नहीं, बल्कि चाँद के पास जा रहा हूँ", अभिषेक हँसते हुए बोल...
वो-तुम्हारी फिक्र है बी इसलिए, बाकी रखो भरोसा उसी पर आंखें खुली रखो। वो-तुम्हारी फिक्र है बी इसलिए, बाकी रखो भरोसा उसी पर आंखें खुली रखो।
क्या पता था कि फिर कभी उससे कुछ बोल भी ना पाऊंगा। क्या पता था कि फिर कभी उससे कुछ बोल भी ना पाऊंगा।
नकाब के पीछे की आंखों में पानी और शर्म दोनों भर आया। नकाब के पीछे की आंखों में पानी और शर्म दोनों भर आया।
डरा हुआ आदमी डरा हुआ आदमी